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सांकेतिक चित्र |
जिस प्रकार जिहादी तत्व किसी इलाके में अपनी संख्या बढ़ जाने के बाद वहां किसी और को चैन से जीने नहीं देते, बिलकुल उसी तरह वामपंथी भी धीरे धीरे अपनी संख्या किसी जगह पर बढ़ाते
और वहां हिन्दुओ की स्तिथि को दयनीय कर दी जाती है
FTII जो की एक सरकारी शिक्षा संस्थान है, पुणे में है और इसमें नाटक इत्यादि की पढाई होती है
वहां हिन्दू छात्र वामपंथियों के कारण किस प्रकार खौफ में रहते है
उसका उदाहरण देखिये
आप देख सकते है, की वामपंथियों का कैसा खौफ है हिन्दू छात्रों में, ये वामपंथियों के कारण अपनी बात को भी रखने में खौफ महसूस करते है
अब FTII के ही छात्र का लेटर देखिये, हमने इस लेटर में कुछ एडिट नहीं किया है
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एफटीआईआई के छात्र का एफटीआईआई के छात्रों के नाम पत्र
भारतीय मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोने का सबूत वक़्त-वक़्त पर देती रहती है। फिलहाल इसका नया उदहारण है फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) पुणे के नए चेयरमैन अनुपम खेर की नियुक्ति। दरअसल नियुक्ति के कुछ दिन पहले से ही सीनियर छात्रों और मैनेजमेंट के बीच एक मुद्दे को लेकर बहस चल रही थी जिसको लेकर 5 छात्रों को बर्खास्त भी किया गया था। वजह इतनी थी की संस्थान छात्रों को डायलॉग फिल्म बनाने के लिए दो दिन का वक़्त दे रहा था जबकि छात्रों को तीन दिन वक़्त चाहिए था।
जब इस मुद्दे को लेकर मीटिंग हुई तो सभी छात्रों ने मीटिंग का बायकॉट कर दिया। मजबूरन कुछ छात्रों को बर्खास्त कर दिया गया। दरअसल संस्थान नियमों को लेकर इतना सख्त इसलिए भी होना चाह रहा है क्यूंकि अब तक फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) को तीन साल का कोर्स 5 और 6 साल में करा पाने के लिए जाना जाता है। इसकी एक वजह संस्थान में कुछ संसाधनों कमी है जिससे अपनी तारीख आने का इंतज़ार करना पड़ता है।
वहीँ दूसरी वजह है संस्थान का स्वतंत्र माहौल और सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधाएँ,जिन्हे छोड़कर जाने का कई सीनियर छात्रों का मन नहीं होता। वो किसी ना किसी तरह से बाधा बनकर,सस्ती सुन्दर और मजेदार हॉस्टल में अधिक से अधिक दिन बिताने की जुगत भिड़ाने में जुटे रहते है जिसका खामियाज़ा बाकी के छात्रों को भी भुगतना पड़ता है।
तीन दिन पहले जब अनुपम खेर की नियुक्ति हुई तो सीनियर छात्रों को समझ नहीं आया की विवाद कैसे पैदा किया जाये। अनुपम खेर तो मंझा हुआ अभिनेता है। तो जो पहले से मैनेजमेंट के साथ बर्खास्तगी वाला मुद्दा चल रहा था उसकी दिशा को मोड़ने का काम किया गया। यह काम जूनियर छात्रों के कंधे पर बन्दूक रखकर किया गया। जूनियर नए आये हुए छात्र है उन्हें बताया गया की आपको भी डायलॉग फिल्म के लिए दो दिन कम पड़ेंगे अभी से जुट जाओ मैनेजमेंट को हिलाने में।
जूनियर छात्रों को सीनियर की बात मानना इसलिए जरुरी लगता है उन्हें लगता है की यही सीनियर फिल्म इंडस्ट्री में उनकी मदद करेंगे,सो उनकी लड़ाई अब इनकी लड़ाई बन गयी। मैनेजमेंट छात्रों की बर्खास्तगी पर अड़ा था लेकिन मैनजेमेंट ने छात्रों को बहाल करने का भी फैसला ले लिया। यह तो बड़ी बुरी बात थी कुछ लोगों के लिए विवाद इतनी आसानी से थम जाये यह अच्छी बात नहीं। कुछ अखबारों ने लिखा की अनुपम खेर की नियुक्ति होते ही 5 छात्रों को बर्खास्त किया गया। अनुपम खेर को जिम्मेदारी लेने से पहले ही तानाशाह और एजेंडावादी बनाने की कोशिश मीडिया ने शुरू कर दी। जबकि ये बर्खास्तगी महीनो पहले हुई थी।
सीनियर छात्रों का नया दांव था ओपन लेटर। ओपन लेटर में फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा देश भर चलाए जा रहे छोटे-छोटे कोर्स और वर्कशॉप पर सीनियर छात्रों ने ऐतराज़ जताया की 20 दिन के कोर्स के 20 हज़ार लेना जायदा है। अब लेह लद्दाख में फिल्म इंस्टीट्यूट 20 दिन का कोई कोर्स कराता है,वहां लोग कोर्स करते है उन्हें कोई समस्या नहीं है लेकिन यहाँ कैंपस में बैठे सीनियर छात्रों को यह कोर्स महंगा लगता है,जबकि इनका इस बात से उतना ही वास्ता है जितना की एक किसान का नासा से।
जबकि असलियत यह है की फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में बहुत सारे कर्मचारी ऐसे है जो स्थाई नहीं है। ऐसे में उनकी कम सैलरी के अलावा उन्हें आर्थिक मदद देने के इरादे से एफटीआईआई द्वारा कम-अवधि वाले पाठ्यक्रम को चलाया जाता है। संस्थान की आय संबंधी चीज़ें छात्रों के लिए जानना क्यों जरुरी है ? यह छात्रों के लिए जानना जरुरी नहीं है ।
दरअसल कोशिश एक ही है की किस तरह से इन मुद्दों से विरोध करते करते हम वो कर पाए जो हमने 2 साल पहले किया था। ये चुनिंदा सीनियर छात्र किसी भी हाल में अनुपम खेर की नियुक्ति पर विवाद चाहते है। अब जब कलाकार अच्छा है तो संस्थान के सभी छात्र तो विरोध के लिए तैयार होंगे नहीं,एक्टिंग के छात्र तो बिलकुल भी नहीं। इसलिए अब कुछ बुद्धिजीवी सीनियर छात्र एक ये मुद्दा उठाने की कोशिश कर रहे है की अनुपम खेर का पहले से एक संस्थान है।
तो क्या ऐसे में उनसे ये उम्मीद की जा सकती है की वो बच्चों से ये कहेंगे की एफटीआईआई में मत पढो मेरे संस्थान में पढो? प्लीज। अनुपम खेर के संस्थान से पढने के बाद बच्चे एफटीआईआई में पढने आते है क्यूंकि अनुपम खेर का संस्थान महज वो कोचिंग है जो एफटीआईआई में प्रवेश दिलाने की तैयारी करता है जैसे की सारी कोटा की कोचिंग आईआईआईटी की।
अनुपम खेर से पहले विनोद खन्ना भी संसद रहते हुए एफटीआईआई के चेयरमेन रहे है या उनसे पहले भी जितने लोग चेयरमैन रहे है। उनके लिए चेयरमैन बने रहना ही एक मात्र काम नहीं था वो किसी और काम में महारत रखने के बाद ही उस पोस्ट तक पहुंचे थे।ये सब बातें फिजूल है असल में लड़ाई किसी के हितों के टकराव की नहीं है, किन्ही विचारधारों के बीच भी नहीं है।
लड़ाई बस विरोध की है,विरोध मरना नहीं चाहिए, विरोध जिंदा रहना चाहिए क्यूंकि ये सरकार के खिलाफ नहीं बीजेपी के खिलाफ है। ये सीनियर छात्र विजडम ट्री के नीचे तरह- तरह के कार्यक्रमों के नाम पर खुले आम बीजेपी को गरियाने का काम करते है और वहां से हटने के बाद चिल्लाते है की अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है। ऐसा दोगलापन किसी छात्र में नहीं होता बस उनमे होता है जो एक एजेंडा लेकर छात्र के वेश में संस्थान में मौजूद रहते है और सरकार की सब्सिडी पर,सरकार को ही गाली देने का काम करते है।
इन छात्रों को लगता है की इनकी हर बात खबर बन जाती है और ये मीडिया का उपयोग कर रहे है। दरअसल ये भूल जाते है की मीडिया इनका उपयोग कर रहा होता है और खबर इसलिए नहीं बन जाती है की आपमें कुछ खास है बल्कि एफटीआईआई खुद में खास है।
जिसे कुछ महान कलाकारों ने खास बनाया है और वो कलाकार महान इसलिए बने क्यूंकि उन्होंने एफटीआईआई का उपयोग सीखने के लिए किया। आप एफटीआईआई का उपयोग किसी के विरोध के लिए कर रहे है,जिसमे ना चाहते हुए भी आधे से जायदा छात्र मजबूरन उस भीड़ का हिस्सा बने हुए है और जाने अनजाने उस यज्ञ में पूर्णाहुति देने का काम कर रहे है जिसमे एफटीआईआई स्वाहा होगा।
नोट- इस लेख को लिखने के बाद अपना नाम और पता जरुर बताता लेकिन अभी संस्थान में तीन साल शांति से पढना चाहता हूँ। क्यूंकि मेरा कोई एजेंडा नहीं है तो जाहिर है पब्लिसिटी पाने की कोई इच्छा नहीं है। हाँ जाने अनजाने में, मैं भी इस भीड़ का हिस्सा हूँ जो बस विरोध के लिए है.