क्या जमाना था, प्रधानमंत्री के आवास पर, सोनिया गाँधी के आवास पर मेला लगा करता था
ये बड़े बड़े पत्रकार, बुद्धिजीवी, लेखक जाया करते थे
पार्टियां हुआ करती थी, सोनिया गाँधी के साथ होली खेला करते थे, उनके गाँव में रंग लगाया करते थे
क्या सुनहरे दिन थे, NGO के धड़ाधड़ लाइसेंस मिलते थे, कोई इनकम टैक्स नहीं, कोई ED कोई जाँच नहीं कोई सीबीआई कोई तंग करने वाला नहीं
NGO में खूब पैसे आते थे, हवाला का धन डायरेक्ट जेबों में पहुंचा करता था
वाह क्या जमाना था, हम शहर शहर घुमा करते थे, जायका इंडिया का, खाया पिया ऐश किया
पर वो दिन अब रहे नहीं
2014 में भैया मोदी जो आ गया, अब कहाँ वो होली, कहाँ प्रधानमंत्री के आवास पर वो लक्ज़री पार्टियां, 7000 रुपए वाली थालियां, कहाँ मिलती है वो
भैया NGO के लाइसेंस तो मिलने बंद ही हो गए, जो पहले के NGO थे मोदी ने ED, NIA और न जाने क्या क्या लगाकर सब बंद कर दिया
भैया हवाला तो ख़त्म ही कर दिया, जेबों से पैसा ही निकाल लिया
कहाँ गए वो दिन, लौट आओ रे
अब न काम बचा, और न ही जायका इंडिया, न ऐश न घूमना फिरना, अब तो जी "द वायर" जैसे पोर्टल के लिए काम करते है, वो सुनहरे दिन तो 2014 के बाद से ही ख़त्म है जी
अब तो बस दिल ही दिल में 1 ही तम्मना है, 2019 में ये मोदी हट जाएं और इनके पुराने सुनहरे दिन लौट जाएं, फिर मिलने लगे NGO के धड़ाधड़ लाइसेंस, हवाला का हो पूरा खेल
फिर खेली जाएँ होलियां, फिर खाई जाये 7000 थालियां, भैया उनके बिना दिल लगता ही कहाँ