कुछ बातें इतिहास के गर्त में हैं। आइये इतिहास की धूल झाड़ कर तथ्य बाहर निकाले जाएं। गोरखपुर मूलतः हिंदुमहासभा की सीट है। महंत दिग्विजय नाथ जी जो सावरकर जी अभिन्न थे, इस सीट से सांसद होते थे। उनके उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ जी उनके बाद हिन्दुमहासभा से सांसद होते आये। उन्होंने अपना अंतिम चुनाव ही भाजपा से जीता था। उनके बाद महंत आदित्यनाथ जी इस सीट से भाजपा से जीतते आ रहे हैं। भाजपा से जीतते हुए भी उनकी छवि उनके कार्यों के कारण हिंदु नेता की है। जिसे लाख रोकने पर भी कोई लगाम नहीं लगा सका। पिछला चुनाव दबे-छिपे स्वर में हिन्दुवाद के आधार पर लड़ना भाजपा की विवशता थी। अतः लगभग प्रदेश की पूरी भाजपा और केंद्र की भी ख़ासी भाजपा की अनिच्छा के बाद भी योगी जी को आगे करके चुनाव लड़ा गया।
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राज्य की प्रशासनिक मशीनरी की ट्रांसफर पोस्टिंग का सारा काम संगठन मंत्री सुनील बंसल (मोटी मलाई के विशेष शौक़ीन) और मोदी जी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र के हाथ में है। वरिष्ठ अधिकारी सीधा उन्हें ही रिपोर्टिंग करते हैं। कई अधिकारियों को योगी जी चाहकर भी हटा नहीं पाए, न विचारधारा के अनुकूल अधिकारी पोस्ट कर पाए।
DGP सुलखान सिंह के रिटायर होने के बाद योगी जी ने ओ.पी.सिंह को उत्तर प्रदेश का नया डीजीपी बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। राजनाथ सिंह फ़ाइल पर बैठ गए बल्कि लेट गए। महीना भर यूपी बिना डीजीपी के रही। परिणामतः ब्यूरोक्रेसी में बहुत बुरा सन्देश गया। ब्योरोक्रेसी घोड़ा है जो बैठते ही सवार को पहचान लेती है।
निकाय चुनाव में गोरखपुर की सीट पर योगी जी धर्मेन्द्र सिंह को टिकट दिलाना चाहते थे पर मुख्यमंत्री की इच्छा की अवहेलना करते हुए सुनील बंसल ने दूसरे को दिया। मलाई की प्लेट बल्कि डोंगे को ध्यान में रख कर सोचिए क्यों ?
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हाल ही में राज्यसभा टिकट का बंटवारा हुआ है, राजा भैया के बेहद ख़ास एमएलसी यशवन्त सिंह ने योगी जी के लिए विधानपरिषद से इस्तीफा दिया जिस सीट पर योगी जी उपचुनाव लड़कर सदन में पहुंचे।
उस समय यशवन्त सिंह को राज्यसभा टिकट दिए जाने का आश्वासन दिया गया था। इसी कारण राजा भैया ने फूलपुर लोकसभा में जमकर बीजेपी के लिए प्रचार भी करवाया। कुछ दिन पहले तक ये तय था कि यशवन्त सिंह को योगी जी राज्यसभा में भिजवायेंगे पर इन्हीं खुराफ़ातियों ने यशवन्त सिंह का टिकट काटकर हरनाथ सिंह यादव को थमा दिया गया। प्रदेश के मुख्यमंत्री को राज्यसभा की 10 में से किसी एक पर अपनी पसन्द का उम्मीदवार बनवाने नहीं दिया गया।
अब गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव आया। गोरखपुर सीट पर पीढ़ियों से मठ का दबदबा रहा है। योगी जी ने कई नाम सुझाए जिनमें मठ से जुड़े ब्राह्मण सहयोगी, निकाय चुनाव में ठुकराए गए धर्मेन्द्र सिंह और अंत में मठ से जुड़े दलित योगी कमलनाथ का नाम सुझाया। योगी कमलनाथ को टिकट मिलता तो आसानी से वो सीट निकाल लेते।
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योगी जी को नाम का मुख्यमंत्री बना कर मलाई चाटने वाले बिलाव सोच रहे हैं कि पार्टी 2019 में आने से रही इसलिये जितना अधिक सम्भव हो मलाई का संग्रह कर लो। प्रदेश में ऐसे ही कुकर्म करते हुए पिछली पीढ़ी के भाजपा नेतृत्व ने पार्टी का भट्टा बैठाया था। अब फिर उसी की तैयारी की जा रही है।